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शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

दीप की लौ-से दिन (Deep ki lau-se din by Kedarnath Agrawal)



भूल सकता मैं नहीं 
ये कुच-खुले दिन,
ओंठ से चूमे गए,
उजले, धूले दिन -
जो तुम्हारे साथ बीते 
रस-भरे दिन,
बावरे दिन,
दीप की लौ-से 
गरम दिन l 


कवि - केदारनाथ अग्रवाल (1911-2000)
संकलन - पदचिह्न 
संपादक - नंदकिशोर नवल, संजय शांडिल्य 
प्रकाशक - दानिश बुक्स, दिल्ली, 2006 


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