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बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

कुफ्र (Kufra by Amrita Pritam)


आज हमने एक दुनिया बेची 
और एक दीन ख़रीद लिया  
हमने कुफ्र की बात की

सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली 

आज हमने आसमान के घड़े से 
बादल का ढकना उतारा
और एक घूँट चाँदनी पी ली

यह जो एक घड़ी हमने 
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे 


यित्री - अमृता प्रीतम
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983

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