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गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

समस्त आयु (Samast aayu by Naresh Mehta)


तुम्हारे बिना 
काटे नहीं कटा आज का दिन l 
लगा -
दिन नहीं, विषुवत रेखा है ;
पृथिवी की इस मेखला से 
किसी की भी तो मुक्ति नहीं l 

पोर-पोर काट डाला 
पर -
नहीं ही कटा l 
दिन था, कि 
जिसने शाम तक  
मुझे ही काट कर रख दिया l 

परन्तु तुम्हारे आते ही 
लगा -
कितनी छोटी है 
यह समस्त आयु,
कम से कम 
आज के इस एक दिन के बराबर ही होती l 



कवि - नरेश मेहता 
किताब - 'तुम मेरे मौन हो' से 'समिधा, श्रीनरेश मेहता का सम्पूर्ण काव्य', खंड - 1 में संकलित 
प्रकाशक - लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1997

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