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सोमवार, 12 नवंबर 2012

राजधानी में बैल (Rajdhani mein bail by Uday Prakash)


सूर्य सबसे पहले बैल के सींग पर उतरा 
फिर टिका कुछ देर चमकता हुआ 
हल की नोक पर 

घास के नीचे की मिट्टी पलटता हुआ सूर्य 
बार-बार दिख जाता था 
झलक के साथ 
जब-जब फाल ऊपर उठते थे 

इस फ़सल के अन्न में 
होगा 
धूप जैसा आटा 
बादल जैसा भात 

हमारे घर के कुठिला में 
इस साल 
कभी न होगी रात l 


कवि - उदय प्रकाश 
संकलन - एक भाषा हुआ करती है 
प्रकाशक - किताबघर प्रकाशन, दिल्ली, 2009 

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