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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

अभी तक खड़ी स्त्री (Abhi tak khadi stree by Raghuvir Sahai)


ग्रीष्म फिर आ गया 
फिर हरे पत्तों के बीच 
खड़ी है वह 
ओंठ नम 
और भरा-भरा-सा चेहरा लिये 
बदली की रोशनी-सी नीचे को देखती 

निरखता रह 
उसे कवि 
न कह 
न हँस 
न रो 
कि वह 
अपनी व्यथा इस वर्ष भी नहीं जानती।
                                                  - 1959


कवि - रघुवीर सहाय 
संकलन - रघुवीर सहाय : प्रतिनिधि कविताएँ 
संपादक - सुरेश शर्मा 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1994

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