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सोमवार, 7 जनवरी 2013

हम दोनों हैं दुखी (Hum donon hain dukhi by Trilochan)

हम दोनों हैं दुखी। पास ही नीरव बैठें,
बोलें नहीं, न छुएँ। समय चुपचाप बिताएँ,
अपने अपने मन में भटक भटककर पैठें
उस दुख के सागर में जिसके तीर चिताएँ
अभिलाषाओं की जलती हैं धू धू धू धू।
मौन शिलाओं के नीचे दफ़ना दिये गये
हम, यों जान पड़ेगा। हमको छू छू छू छू
भूतल की उष्णता उठेगी, हैं किये गये
खेत हरे जिसकी साँसों से। यदि हम हारें
एकाकीपन से गूँगेपन से तो हम से
साँसें कहें, पास कोई है और निवारें
मन की गाँस-फाँस, हम ढूँढें कभी न भ्रम से।
गाढे दुख में कभी-कभी भाषा छलती है
संजीवनी भावमाला नीरव चलती है।


कवि - त्रिलोचन 
संकलन - त्रिलोचन : प्रतिनिधि कविताएँ 
संपादक - केदारनाथ सिंह 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, 1985

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