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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

लोहे का गीत (Lohe ka geet by Ekant Shrivastav)


लुहार के हाथों में घन बन जाना
माली के हाथों में खुरपी
बढ़ई के हाथों में बन जाना बसुला
किसान के हाथों में कुदाल
पर ओ भैया लोहा
सेठ की संदूकची में
मत बनना ताला और चाबी

रसोई में जाना तो हँसिया बन जाना
आँगन में कपड़ों का तार
रोटी जो जले तो चिमटा बन जाना
चप्पल जो टूटे तो कील
पर ओ भैया लोहा
हत्यारों के हाथों में
मत बनना खंजर-तलवार

कुएँ में बाल्टी और घिर्री बन जाना
घोड़े के पाँवों में नाल
दुल्हन जो जाए तो पेटी बन जाना
पाहुन जो आए तो साँकल
पर ओ भैया लोहा
जुल्मी राजा के राज में
मत बनना जेल की सलाख l 

कवि - एकान्त श्रीवास्तव 
संकलन - मिट्टी से कहूँगा धन्यवाद 
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2000   

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