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रविवार, 26 मई 2013

अन्त नहीं है यह (Ant nahin hai yah by Pranay Kumar)


ख्यालों में अब भी है कुछ 
हरा-भरा-सा 
थोड़ा सपना भी है आँखों में 
बहुत कुछ बाकी है अब भी जहाँ में 
प्यार के काबिल 
फिर क्यों उदास होऊँ मैं भला ! 

अब भी थरथराता है 
नीलकमल आँखों में 
भले ही बारूदी-सी गन्ध हो फिजाओं में 
लेकिन अन्त नहीं है यह 
आएगा कोई खत  
कहीं से लिए थोड़ी-सी हरियाली जरूर 

यह मौसम उदासी के लिए नहीं है 



कवि - प्रणय कुमार 
संकलन - जनपद : विशिष्ट कवि  
संपादक - नंदकिशोर नवल, संजय शांडिल्य
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2006

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