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गुरुवार, 16 मई 2013

लत्ते उड़ जायेंगे (Latte ud jayeinge by Maithilisharan Gupt)


तड़क भड़क और कड़क मिटेगी सब 
गर्व और गौरव सभी ये गुड़ जायेंगे 
गाज न गिराओ ओ घमण्डी घनो, मानो कहा 
काले मुँह आप ही तुम्हारे मुड़ जायेंगे 
मातृमूर्ति मेदिनी को सीधे जलदान करो 
झोंके झूम झंझा के जहाँ वे जुड़ जायेंगे 
पत्ते उड़ जायेंगे तुम्हारे घटाडम्बर के 
याद रक्खो अम्बर के लत्ते उड़ जायेंगे !



कवि - मैथिलीशरण गुप्त 
संकलन - स्वस्ति और संकेत 
प्रकाशक - साकेत प्रकाशन, चिरगाँव, झाँसी, 1983

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