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बुधवार, 19 जून 2013

नेग (Neg by Parveen Shakir)


सुब्ह विसाल की फूटती है
चारों ओर
मदमाती भोर की नीली ठंडक फैल रही है
शगुन का पहला परिन्द
मुंडेर पर आकर
अभी अभी बैठा है
सब्ज़ किवाड़ों के पीछे इक सुर्ख़ कली मुस्काई
पाज़ेबों की गूंज फ़ज़ा में लहराई
कच्चे रंगों की साड़ी में
गीले बाल छुपाये गोरी
घर का सारा बाजरा
आंगन में ले आयी 


शायरा - परवीन शाकिर 

संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ

प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली,1994
 

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