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बुधवार, 21 अगस्त 2013

नज़रों से गिरानेवाले (Nazron se giranewale by Habeeb 'Jalib')

हमको नज़रों से गिरानेवाले 
ढूँढ़ अब नाज़ उठानेवाले 

छोड़ जाएँगे कुछ ऐसी यादें 
रोएँगे हमको ज़मानेवाले 

रह गए नक़्श हमारे बाक़ी 
मिट गए हमको मिटानेवाले 

मंज़िले-गुल का पता देते हैं 
राह में ख़ार बिछानेवाले

इन ज़मीनों पे गुहर बरसेंगे 
ऐसे कुछ अब्र हैं छानेवाले

देख वो सुब्ह का सूरज निकला 
मुस्कुरा अश्क बहानेवाले !

आस में बैठे हैं जिनकी 'जालिब'
वो ज़माने भी हैं आनेवाले 

ख़ार = काँटे    गुहर = मोती  अब्र = बादल


शायर - हबीब 'जालिब'
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : हबीब 'जालिब'संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010

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