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मंगलवार, 10 सितंबर 2013

अकेले पेड़ों का तूफ़ान (Akele pedon ka toofan by Vijay Dev Narayan Sahi)


फिर तेज़ी से तूफ़ान का झोंका आया 
और सड़क के किनारे खड़े 
सिर्फ़ एक पेड़ को हिला गया 
शेष पेड़ गुमसुम देखते रहे 
उनमें कोई हरकत नहीं हुई l 

        जब एक पेड़ झूम झूम कर निढाल हो गया 

        पत्तियाँ गिर गयीं 
        टहनियाँ टूट गयीं 
        तना ऐंचा हो गया 
        तब हवा आगे बढ़ी 
        उसने सडक के किनारे दूसरे पेड़ को हिलाया 
        शेष पेड़ गुमसुम देखते रहे 
        उनमें कोई हरकत नहीं हुई l 

इस नगर में 
लोग या तो पागलों की तरह 
उत्तेजित होते हैं 
या दुबक कर गुमसुम हो जाते हैं l 
जब वे गुमसुम होते हैं 
तब अकेले होते हैं 
लेकिन जब उत्तेजित होते हैं 
तब और भी अकेले हो जाते हैं l


कवि - विजय देव नारायण साही 
संग्रह - साखी
प्रकाशन - सातवाहन पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1983

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