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मंगलवार, 28 जनवरी 2014

केन किनारे (Ken kinare by Kedarnath Agrawal)

केन किनारे
पल्थी मारे
पत्थर बैठा गुमसुम !
सूरज पत्थर 
सेंक रहा है गुमसुम !
साँप हवा में 
झूम रहा है गुमसुम !
पानी पत्थर 
चाट रहा है गुमसुम !
सहमा राही 
ताक रहा है गुमसुम !


कवि - केदारनाथ अग्रवाल 
संकलन - कविता नदी 
संपादक - प्रयाग शुक्ल 
प्रकाशक - महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए 
                किताबघर प्रकाशन, दिल्ली, 2002

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