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रविवार, 12 जनवरी 2014

मुस्तक़बिल (Mustaqbil by Makhdoom Mohiuddin)

चला आ रहा है चला आ रहा है l 
चला आ रहा है चला आ रहा है l 
 
         धड़कते दिलों की सदा आ रही है
         अन्धेरे में आवाज़े पा आ रही है 
         बुलाता है कोई निदा आ रही है l  
चला आ रहा है चला आ रहा है l 
चला आ रहा है चला आ रहा है l 

          न सुल्तानी-ए तीरगी है ज़ारी 
          न तख्ते सुलेमां न सरमायादारी 
          गरीबों की चीख़ें न शाही सवारी l
चला आ रहा है चला आ रहा है l 
चला आ रहा है चला आ रहा है l 

           उड़ाता हुआ परचमे ज़िन्दगानी 
           सुनाता हुआ एहदे नौ की कहानी 
           जिलू में ज़फ़रमन्दिया शादमानी
चला आ रहा है चला आ रहा है l 
चला आ रहा है चला आ रहा है l 
           
           सफीना मसावत का खे रहा है
           जवानों से कुर्बानियाँ ले रहा है 
           गुलामों को आज़ादियाँ दे रहा है l 
चला आ रहा है चला आ रहा है l 
चला आ रहा है चला आ रहा है l
 
 
मुस्तक़बिल = भविष्य 
आवाज़े पा = पैर की आवाज़ 
निदा = आह्वान 
एहदे नौ = नवयुग 
जिलू = सामने
ज़फ़रमन्दिया = सफलताएँ 
शादमानी = खुशी से भरी हुई 
सफीना = नाव 
मसावात = समानता
 
शायर - मख़्दूम मोहिउद्दीन 
संकलन - सरमाया : मख़्दूम मोहिउद्दीन 
संपादक - स्वाधीन, नुसरत मोहिउद्दीन 
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 2004

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