Translate

मंगलवार, 10 जून 2014

बाले दीप (Baale deep by Shamsherbahadur Singh)

बाले दीप 
चतुर नारि ने 
पिय आगमन को l 
 
संध्या की पलकें झुकीं,
फैली अलकें भारी 
पिय की सुमुखि प्यारी ने 
अँगिया से दीप धर 
बाले 
पिय आगमन को l 
 
दीर्घ निशा की वेला,
रे वह प्रेम की वेला l 
एकाकी कवि ही करता उस की अवहेला l 
 
नव रस सनी नारि,
निज तन आँचल सँवार उर 
अपने प्यारे को अगोरती 
         यौवन द्वारे 
         बाले दीप रे 
         चतुर नारि ने 
         पिय आगमन को l  
 
 
कवि - शमशेरबहादुर सिंह 
संकलन - दूसरा सप्तक
संपादक - अज्ञेय 
प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, पहला संस्करण - 1949

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें