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सोमवार, 7 जुलाई 2014

नींद उड़ गई है ! (Neend ud gai hai by Ramgopal Sharma 'Rudra')


नींद उड़ गई है !

       उगते अस्त हुआ रवि जिस दिन 
       आँधी उठी, उड़े सुख के तृण ;
       सिमट गए सब दृश्य ; किस कदर 
                  दृशि सिकुड़ गई है !

      बहार कोई क्या पहचाने !
      घायल की घायल ही जाने ;
      मृग से उसकी नाभि, सर्प से 
                  मणि बिछुड़ गई है !

      भीतर जैसी है यह माटी,
      कैसे निकले, ऐसी काँटी ?
      वज्रहृदय में गड़कर कोई 
                  याद मुड़ गई है !

                                - 1977 


कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
किताब - रुद्र समग्र 
संपादक - नंदकिशोर नवल 
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991 





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