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शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

प्रथम किरण (Pratham kiran by Ajneya)

भोर की 
प्रथम किरण 
          फीकी :
अनजाने 
जागी हो 
याद 
         किसी की -

अपनी
मीठी 
        नीकी !
धीरे-धीरे 
उदित 
रवि का 
लाल-लाल 
        गोला 
चौंक कहीं पर 
छिपा 
मुदित 
बन-पाखी 
        बोला 
दिन है 
जय है 
यह बहु-जन की :

प्रणति 
लाल रवि,
ओ जन-जीवन 
लो यह 
मेरी 
सकल साधना 
         तन की 
         मन की -

वह बन-पाखी 
जाने गरिमा 
महिमा 
मेरे छोटे 
चेतन 
         छन की !



कवि - अज्ञेय 
संकलन - चुनी हुई कविताएं 
प्रकाशक - राजपाल एंड सन्ज, दिल्ली, 1987 



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