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सोमवार, 29 सितंबर 2014

मुझे क़दम-क़दम पर (Mujhe kadam-kadam par by Muktibodh)

मुझे क़दम-क़दम पर 
              चौराहे मिलते हैं 
              बाँहें !फैलाए !!

एक पैर रखता हूँ 
कि सौ राहें फूटतीं,
व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ ;
बहुत अच्छे लगते हैं 
उनके तज़ुर्बे और अपने सपने … 
               सब सच्चे लगते हैं ;
अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ ;
जाने क्या मिल जाए !!
…   …   … 



कवि - मुक्तिबोध 
किताब - छत्तीसगढ़ में मुक्तिबोध 
संपादक - राजेन्द्र मिश्र 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2014 

शनिवार, 27 सितंबर 2014

गौरैए का बच्चा (Gauraiye ka bachcha by Charlotte Perkins Gilman in Bhagat Singh's Jail notebook

गौरैए का बच्चा गौरैए को दाना नहीं चुगाता,
                चूजा मुर्गी को चुग्गा नहीं कराता,
बिल्ली का बच्चा बिल्ली के लिए चूहे नहीं मारता -
                यह महानता तो सिर्फ मनुष्य को नसीब है। 
हम सबसे बुद्धिमान, सबसे बलवान नस्ल हैं -
                हम काबिले तारीफ हैं। 
एकमात्र जिन्दा प्राणी 
                जो जीता है अपने बच्चों की मेहनत पर। 


अमरीकी कवयित्री  - शार्लोट पर्किन्स गिलमैन (1860-1935) 
किताब - भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज
संकलन और संपादन - चमन लाल 
प्रकाशक - आधार प्रकाशन, पंचकूला, 2004


मूलतः 'एक शहीद की जेल नोटबुक' के पृष्ठ 33 (30) से ये पंक्तियाँ ली गई हैं. इसमें भगत सिंह द्वारा जेल में (1929-31) अध्ययन के दौरान लिए गए नोट्स और उद्धरण  हैं. इनका मूल अंग्रेज़ी में संपादन भूपेंद्र हूजा ने किया है.  'भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज' में यह नोटबुक मौजूद है. 

गुरुवार, 25 सितंबर 2014

प्रीति (Preeti by Dinkar)

प्रीति न अरुण साँझ के घन सखि !
              पल-भर चमक बिखर जाते जो 
              मना कनक-गोधूलि-लगन सखि !
              प्रीति न अरुण साँझ के घन सखि !

प्रीति नील, गंभीर गगन सखि !
              चूम रहा जो विनत धरणि को,
               निज सुख में नित मूक-मगन सखि !
               प्रीति नील, गंभीर गगन सखि !

प्रीति न पूर्ण चन्द्र जगमग सखि !
               जो होता नित क्षीण एक दिन,
               विभा-सिक्त करके अग-जग सखि !
               प्रीति न पूर्ण चन्द्र जगमग सखि !

दूज-कला यह लघु नभ-नग सखि !
               शीत, स्निग्ध, नव रश्मि छिड़कती 
               बढ़ती ही जाती पग-पग सखि !
               दूज-कला यह लघु नभ-नग सखि !

मन की बात न श्रुति से कह सखि !
               बोले प्रेम विकल होता है,
               अनबोले सारा दुख सह सखि !
               मन की बात न श्रुति से कह सखि !

कितना प्यार ? जान मत यह सखि !
               सीमा, बन्ध, मृत्यु से आगे 
               बसती कहीं प्रीति अहरह सखि !
               कितना प्यार ? जान मत यह सखि !

तृणवत् धधक-धधक मत जल सखि !
               ओदी आँच धुनी विरहिनि की,
               नहीं लपट की चहल-पहल सखि !
               तृणवत् धधक-धधक मत जल सखि !

अन्तर्दाह मधुर मंगल सखि !
               प्रीति-स्वाद कुछ ज्ञात उसे जो 
               सुलग रहा तिल-तिल, पल-पल सखि ! 
               अन्तर्दाह मधुर मंगल सखि !


कवि - दिनकर 
संकलन - कविश्री 
प्रकाशक - नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, 1989 

शनिवार, 20 सितंबर 2014

रोशनी (Roshni by Amrita Pritam)


हिज्र की इस रात में 
कुछ रोशनी-सी आ रही है 
शायद याद की बत्ती 
कुछ और ऊँची हो गयी है … 

एक हादसा, एक जख्म 
और एक टीस दिल के पास थी 
रात को सितारों की रक़म 
इन्हें जरब दे गयी … 

नज़र के आसमान से 
सूरज कहीं दूर चला गया 
पर अब भी चाँद में 
उसकी खुशबू आ रही है … 

तेरे इश्क़ की एक बूँद 
इसमें मिल गयी थी 
इसलिए मैंने उम्र की 
सारी कड़वाहट पी ली … 



कवयित्री - अमृता प्रीतम 
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ : अमृता प्रीतम 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983 

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

गुस्सा (Gussa by Mamta Kalia)

उसने हैरानी से मुझे देखा 
'मैं तो मज़ाक कर रहा था 
तुम इतनी नाराज़ क्यों हो गयीं ?'
मैं उसे कैसे बताती 
यह गुस्सा आज और अभी का नहीं 
इसमें बहुत सा पुराना गुस्सा भी शामिल है 
एक सन तिरासी का एक तिरानवे का 
एक दो हज़ार दो का 
और एक यह आज का 


कवयित्री - ममता कालिया 
किताब - ममता कालिया : पचास कविताएँ, नयी सदी के लिए चयन 
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2012 



रविवार, 14 सितंबर 2014

जुग-जुग जियो, हमारे राजा (Jug-jug jiyo hamare raja by Ramjiwan Sharma 'Jiwan')

जुग-जुग जियो, हमारे राजा 
हम  सब  भूखों  मरें  भले ही 
तुम खाओ सिलाव का खाजा 
जुग-जुग जियो, हमारे राजा 

धनियों को नित पास बुलाओ 
आगे  बढ़कर  हाथ   मिलाओ 
किन्तु  गरीबों  को   देखो  तो 
कर लो  बन्द  तुरत  दरवाजा 
जुग-जुग जियो, हमारे राजा 

आज मुजफ्फरपुर आना है 
कल   पटना-राँची  जाना है 
छोड़ो  रेल, उड़ो  विमान पर 
है  फैशन  का  यही  तकाजा 
जुग-जुग जियो, हमारे राजा 

तुम    करते   निर्वाह   हमारा 
जन्म-दिवस है आज तुम्हारा 
फिर न मनाएँ क्यों हम उत्सव 
गाएँ    और    बजाएँ     बाजा 
जुग-जुग जियो, हमारे राजा 

है   तकदीर   हमारी   खोटी 
पायें    कैसे      कपड़ा-रोटी 
तुम पुण्यात्मा पूर्वजन्म के 
पियो  संतरे  का  रस  ताजा 
जुग-जुग जियो, हमारे राजा 

हमें   छोड़  गोरे   प्रभु   भागे 
दुखड़ा   रोएँ   किसके   आगे 
अब तो तुम्हीं हमारे सबकुछ 
नानी   नाना   आजी   आजा 
जुग-जुग जियो, हमारे राजा 

'जीवन'   बेवकूफ   तू    भारी 
बड़ोँ-बड़ोँ   को    देता     गारी 
धरती  से  कह  फटे, और  तू 
मुँह में कालिख पोत समां जा 
जुग-जुग जियो, हमारे राजा 


कवि - रामजीवन शर्मा 'जीवन'
किताब - काव्य समग्र : रामजीवन शर्मा 'जीवन'
संपादक - नंदकिशोर नवल 
प्रकाशक - सारांश प्रकाशन, दिल्ली, 1996 


शनिवार, 13 सितंबर 2014

चेंज (Change by Raghuvir Sahay)


किसी ने दोस्त से अपने कहा, "कुछ चेंज कम पड़ गई है ;
                                                                     क्या है ?"
दुखी मैं भी खड़ा था, कहा, "है, पर आप क्यों मुझसे 
                                                                भला लेंगे ?"
                           न आप मेरा दुख जानें 
                           न मैं दुख आपका जानूँ। "


कवि - रघुवीर सहाय 
किताब - रघुवीर सहाय रचनावली 
संपादक - सुरेश शर्मा 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 2000 

शनिवार, 6 सितंबर 2014

गाय (Gaay by Kunwar Narain)

सब से डरती गाय। 
घास चरती गाय। 
दूध देती गाय। 
                
               दूध पीता बच्चा। 
               दूध पीती बिल्ली। 
               दूध पीता साँप। 

                             माँ, मुझको डर लगता :
                             मेरा घर 
                             कैसे कैसे जीवों का घर लगता !


कवि - कुँवर नारायण 
संकलन - अपने सामने 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण, 1979