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शनिवार, 20 सितंबर 2014

रोशनी (Roshni by Amrita Pritam)


हिज्र की इस रात में 
कुछ रोशनी-सी आ रही है 
शायद याद की बत्ती 
कुछ और ऊँची हो गयी है … 

एक हादसा, एक जख्म 
और एक टीस दिल के पास थी 
रात को सितारों की रक़म 
इन्हें जरब दे गयी … 

नज़र के आसमान से 
सूरज कहीं दूर चला गया 
पर अब भी चाँद में 
उसकी खुशबू आ रही है … 

तेरे इश्क़ की एक बूँद 
इसमें मिल गयी थी 
इसलिए मैंने उम्र की 
सारी कड़वाहट पी ली … 



कवयित्री - अमृता प्रीतम 
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ : अमृता प्रीतम 
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983 

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