Translate

रविवार, 14 दिसंबर 2014

बच्चा और उसका सोने का कमरा (Bachcha aur uska sone ka kamra by Eliseo Diego)


तुम आज रात डरे हुए हो :
चोर बाहर हैं 
पत्तियों में छिपे 
खिड़की में झाँकते। 
           शीशे से सोना फैलता है 
परछाईं में। 
           और चोर 
पत्तियों में हैं,
एक भीड़, एक अनंतता,
दूसरी ओर के 
नम निभृत स्थान में। 

क्यूबाई कवि - एलिसेओ दिएगो ( 2.7.1920 – 1.3.1994)
अनुवाद - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 
संकलन - धूप की लपेट 
संकलन-संपादन - वीरेंद्र जैन 
प्रकाशन - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000 


दिसंबर आ गया है।  खुर्शीद से अंतिम बातचीत इन्हीं दिनों में हुई थी, यह बात बार-बार कौंध रही है। अभी जो भी कविता पढ़ रही हूँ उसके अर्थ में खुर्शीद झाँक रहे हैं। लगता है कि जीवन पर एक छाया सी पड़ गई है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें