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मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

प्रमाणपत्र (Pramanpatra by Purwa Bharadwaj)


पिछले दिनों परीक्षा और प्रमाणपत्र पर कुछ खोज रही थी मैं। उस दौरान तेत्सुको कुरोयानागी की 'तोत्तो चान'  किताब पलटी और आशा के अनुरूप बहुत दिलचस्प प्रसंग सामने आया। उसमें तोत्तो चान अपने स्कूल से मिलनेवाले पहले प्रगति-पत्र को अपने कुत्ते रॉकी को दिखाती है। उस खुले कागज़ को वह सूँघता है, अपनी गर्दन टेढ़ी करके फिर एक बार देखता है और तोत्तो चान का हाथ चाट लेता है। तोत्तो चान संतुष्ट हो जाती है। उस प्रगति-पत्र में कहीं 'ए' था तो कहीं 'बी' और ऐसे ही कुछ दूसरे चिह्न थे। तब तक तोत्तो चान को यह पता नहीं था कि 'ए' 'बी' से बेहतर होता है या 'बी' 'ए' से। 

काश सभी बच्चे तोत्तो चान की तरह प्रमाणपत्र के अबूझ चिह्नों से अनजान रहते ! मुझे अपनी बेटी का प्रमाणपत्र याद आ गया। मीराम्बिका से लेकर पंचशील प्ले स्कूल, बीच में सेंट ज़ेवियर्स और स्प्रिंगडेल्स स्कूल की दोनों शाखाओं - धौला कुँआ और पूसा रोड का प्रमाणपत्र। नृत्य की कक्षा के लिए दूसरे राज्य की नृत्य-संगीत संस्था से जारी प्रमाणपत्र भी। कितना कुछ था उनमें ! पूरा शिक्षणशास्त्र, पूरी Pedagogy उससे झलकती थी। मीराम्बिका में जब रिपोर्ट कार्ड की जगह दीदी (शिक्षिका) के हाथ से लिखा हुआ पत्र मिला था तब बहुत आश्वस्ति हुई थी। (यह अलग बात है कि वह बहुत क्षणिक आश्वस्ति निकली।) अफ़सोस कि धीरे-धीरे हम रिपोर्ट कार्ड वाले प्रमाणपत्र के आदी हो गए और मेरी बेटी बहुत जल्दी यह समझने लगी कि 'ए' 'बी' से बेहतर होता है या 'बी' 'ए' से।  

एक बार पटना में पुलिस को लेकर बच्चों का नाटक बनाया था सुमन ने। उस कार्यशाला की समाप्ति के बाद बच्चों को प्रमाणपत्र देना तय हुआ था। पुलिसिया रंगों और चिह्नों को लेकर अमिताभ पांडे ने (संभवतः, यहाँ शंका की वजह अपनी स्मृति पर से भरोसा उठना है) उसका प्रमाणपत्र डिज़ाइन किया था। उस पर बच्चों ने खुद अपना नाम लिखा था।  हाल में घर बदलने के दौरान जो दबा छुपा खजाना निकला उसमें मेरी बेटी का वह प्रमाणपत्र भी था। रुपहले चमकदार अक्षरों में उसने चिड़िया जैसा कुछ निशान बना रखा था। 

यह सबकुछ दिमाग में चक्कर काट ही रहा था कि मुझे झटका लगा। एक अनजान शहर के एक सज्जन का नए साल की शुभकामना का संदेश मिला। थोड़ी हैरानी हुई मुझे। अच्छा, उनकी तरफ से कैसे यह संदेश आया। मैंने एक बार जयधी (देवर-देवरानी की बेटी) की सड़क दुर्घटना में मौत के सिलसिले में उनसे संपर्क किया था। अपना फोन उठाकर देखा तो पाया कि मेरे व्हाट्सऐप पर नववर्ष संदेश के ठीक पहले उस बच्ची का मृत्यु प्रमाणपत्र है। उस प्रमाणपत्र में बच्ची का नाम गलत लिख दिया गया था जिसे सुधरवाने के आग्रह से मैंने उन डॉक्टर साहब को भेजा था। कितना अजीब है यह मृत्यु प्रमाणपत्र न ! और उसकी फोटो खींचकर उसे किसी को भेजना और उसके ठीक बाद शुभकामनाओं का आदान-प्रदान ! मैं रस्मी तौर पर भी जवाब नहीं दे पाई उस शुभकामना संदेश का।  मेरे दिमाग में वह मृत्यु प्रमाणपत्र अटका रह गया। 

उसके साथ ही यह सवाल परेशान करता रहा कि आखिर मौके मौके पर जो संदेश मित्रों और परिजनों को भेजे जाते हैं उनको हम कैसे लेते हैं। क्या थोक भाव में एक साथ सबको निपटा देते हैं ? क्या ईद मुबारक का संदेश मैं नहीं लिखूँ या GET WELL SOON नहीं भेजूँ तो दोस्ती या चिंता में कमी आ जाएगी ? प्यार का प्रदर्शन होना ज़रूरी है, उसको व्यक्त करना चाहिए, लेकिन थोक भाव से सबको एक अंदाज़ में कुछ कह कर निश्चिन्त हो जाना मुझे अच्छा नहीं लगता है। सभ्यता का प्रमाणपत्र नहीं है यह। समय की कमी से अधिक इसका कारण मुझे भावना की कमी लगता है। 

या कहिए शब्दों का टोटा पड़ जाता है। हाँ, यह शायद ज़्यादा सही है। जब जन्मदिन या शादी की सालगिरह की सैंकड़ों बधाई हम कबूल करते हैं तो यह लगता है कि शुक्रिया, धन्यवाद, Thank you, Thanks वगैरह को दोहराने के अलावा चारा क्या है ! मेरी कोशिश रहती है कि जिससे जैसा संबंध है उसके मुताबिक लिख पाऊँ, भले ही संक्षिप्त हो। उस क्रम में हम सब अटकते हैं, उलझते हैं। आखिर नए माध्यमों ने हमारे सामने यह भी एक चुनौती पेश की है। हमारे शब्द हमारी भावनाओं और रिश्तों के प्रमाणपत्र माने जाते हैं तो सामनेवाले को उसका इंतज़ार रहता है। दिक्कत होती है जब कहे गए, लिखे गए, भेजे गए शब्दों का पोस्टमार्टम होने लगता है। 

प्रमाणपत्र किसी भी तरह का हो, उसको तोला-परखा जाता है। उसकी चीर-फाड़ होती है। वह नकली तो नहीं, Fake तो नहीं (यह जुमला मैंने अपनी बेटी से सीखा है जो आजकल अक्सर इसका इस्तेमाल करती है। उसे कभी किसी की हँसी Fake लगती है तो किसी का प्यार जतलाना Fake लगता है तो कभी कोई इंसान ही Fake लगने लगता है। मैं डरती भी हूँ उसके जुमले से कि किसी फैसले पर तुरत मत पहुँचो या Judgmental मत हो और दूसरों को खारिज मत करो। बहरहाल ) प्रमाणपत्र को ठोंक बजाकर देखने में गलत कुछ नहीं है। बस ध्यान में यह रखना चाहिए कि प्रमाणपत्र किसने किसको और कब दिया है। चाहे वह बच्चे को दिया गया प्रमाणपत्र हो या औरत के चरित्र पर दिया गया प्रमाणपत्र हो या सरकार की कामयाबी का प्रमाणपत्र हो। 




2 टिप्‍पणियां:

  1. मैंने BA की परीक्षा की तैयारी के दौरान एक लेख पढ़ा था -श्रद्धा और भक्ति। पढ़ने के बाद मैं चकित था कि लेखक ने कितनी गहन बातें सहजता और सुविचारित रूप से पाठकों के सामने रखीं। मैं विस्मित था कुछ दिनों तक बल्कि अभिभूत था उस आलेख को पढकर। आज तुम्हारा यह आलेख पढकर कुछ वैसा ही महसूस कर रहा हूं। जो चीज मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती है वह है तुम्हारी writing में जो flow और विचारों की संप्रेषणीयता है वह unmatched है। कम से कम मैंने तो नहीं पढा है। यह दूसरी बात है कि मैं fiction पढता रहा हूँ।
    Keep it up and keep writing.

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